भोजन एक हथियार के रूप में: वैश्विक राजनीति किस प्रकार अकाल संकट को बढ़ावा दे रही है।
अकाल एक राजनीतिक रणनीति के रूप में: वैश्विक कूटनीति के अंधेरे पक्ष को उजागर करना।
वैश्विक अकाल पर एक गहन नज़र: भोजन का राजनीतिक हथियारीकरण
हाल के वर्षों में, वैश्विक समुदाय ने विभिन्न क्षेत्रों में अकाल संकटों में चिंताजनक वृद्धि देखी है, जिसका लाखों लोगों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। जहाँ प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन को अक्सर इसके प्राथमिक कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता है, वहीं खाद्यान्न की कमी को बढ़ाने में वैश्विक राजनीति की भूमिका इस मानवीय समस्या के एक और चिंताजनक पहलू को उजागर करती है। भोजन, जो एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है, का राजनीतिक और सैन्य संघर्षों में एक हथियार के रूप में तेजी से दुरुपयोग किया जा रहा है, जिससे दुनिया भर में अकाल संकट की गंभीरता बढ़ रही है।
राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष
राजनीतिक अस्थिरता और सशस्त्र संघर्ष अकाल की स्थिति के सबसे बड़े कारणों में से हैं। कई क्षेत्रों में, चल रहे संघर्ष खाद्य उत्पादन और वितरण नेटवर्क को बाधित करते हैं, जिससे लोगों के लिए आवश्यक आपूर्ति तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है। युद्धरत गुट जानबूझकर कृषि क्षेत्रों को निशाना बना सकते हैं, फसलों को नष्ट कर सकते हैं, या नाकेबंदी कर सकते हैं, और विरोधियों को कमज़ोर करने या क्षेत्रों पर नियंत्रण करने के लिए भोजन को एक सामरिक हथियार के रूप में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यमन और सीरिया जैसे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में, भोजन एक रणनीतिक संपत्ति बन गया है, जहाँ युद्धरत पक्ष अक्सर लाभ उठाने या नागरिक आबादी को दंडित करने के लिए मानवीय सहायता में बाधा डालते हैं।
प्रतिबंध और आर्थिक युद्ध
आर्थिक प्रतिबंध भू-राजनीतिक शस्त्रागार का एक और हथियार हैं जो अनजाने में या जानबूझकर खाद्य असुरक्षा को बढ़ा सकते हैं। हालाँकि इनका उद्देश्य सरकारों पर अनुपालन या सुधार के लिए दबाव डालना होता है, लेकिन ये प्रतिबंध अर्थव्यवस्थाओं का गला घोंट सकते हैं और किसी देश की खाद्य और कृषि आपूर्ति आयात करने की क्षमता को सीमित कर सकते हैं। यह आर्थिक युद्ध स्थानीय उत्पादन को तबाह कर सकता है, जिससे खाद्य कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है और कमजोर आबादी के लिए अभाव पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए, ईरान और उत्तर कोरिया, दोनों देशों ने आंशिक रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण खाद्यान्न की कमी का सामना किया है, जिससे उनकी पहले से ही चुनौतीपूर्ण स्थिति और भी जटिल हो गई है।
व्यापार नीतियां और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं
वैश्विक व्यापार नीतियाँ और आपूर्ति श्रृंखलाएँ खाद्य उपलब्धता और कीमतों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संरक्षणवादी नीतियाँ, शुल्क और निर्यात प्रतिबंध वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आयातक देशों में खाद्यान्नों की कमी और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की परस्पर संबद्ध प्रकृति का अर्थ है कि एक देश में लिए गए राजनीतिक निर्णयों के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं, जो दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान, कई देशों ने आवश्यक खाद्य वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध लगाए, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाज़ुकता और राजनीतिक उपायों द्वारा खाद्य संकट को और बढ़ाने की संभावना उजागर हुई।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय राजनीति
वैश्विक राजनीतिक निर्णयों और पर्यावरणीय नीतियों से प्रभावित जलवायु परिवर्तन, बढ़ती खाद्य असुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राजनीतिक निष्क्रियता या अपर्याप्त प्रतिबद्धता, सूखे, बाढ़ और बदलते मौसम जैसे गंभीर पर्यावरणीय परिस्थितियों को जन्म दे सकती है, जिनका कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, संसाधन प्रबंधन, जैसे जल अधिकार या भूमि संरक्षण, पर राजनीतिक बहसें तनाव बढ़ा सकती हैं और खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधनों के कुप्रबंधन में योगदान दे सकती हैं।
निष्कर्ष
भोजन का राजनीतिकरण, चाहे वह प्रत्यक्ष संघर्ष, आर्थिक प्रतिबंधों, व्यापार नीतियों या पर्यावरणीय लापरवाही के माध्यम से हो, आधुनिक भू-राजनीति के एक चिंताजनक पहलू को उजागर करता है। भोजन, जो मानव अस्तित्व के लिए मूलभूत रूप से आवश्यक है, को राजनीतिक हेरफेर या जबरदस्ती का साधन नहीं बनना चाहिए। अकाल संकट से निपटने के लिए तत्काल अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, संघर्ष समाधान के प्रति प्रतिबद्धता और खाद्य सहायता का राजनीतिकरण समाप्त करना आवश्यक है। वैश्विक नेताओं को मानवीय आवश्यकताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए कि खाद्य सुरक्षा को एक सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में, राजनीतिक एजेंडों के प्रभाव से मुक्त, बरकरार रखा जाए। केवल समन्वित प्रयासों से ही दुनिया अकाल संकट को कम करने और सभी के लिए भोजन के मौलिक अधिकार की रक्षा करने की आशा कर सकती है।